नाटक ‘रानी रूपमती’ संगीत को समर्पित अद्भुत प्रेम कथा का मंचन:सामाजिक ताने बाने को बुनती कहानी की आत्मा संगीत
लखनऊ,संवाददाता:संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से संत गाड्गेजी महाराज प्रेक्षागृह,उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ में नाट्य संस्था भरत रंग द्वारा नाटक रानी रूपमती का मंचन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ लोक आयुक्त के उप सचिव अजय कुमार वर्मा तथा संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के सहायक निदेशक डा.राजेश कुमार अहिरवार और सेवा भारती अवध प्रान्त के अध्यक्ष रवींद्र सिंह गंगवार संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित करके किया ।
ऐतिहासिक नाटक रानी रूपमती का लेखन एवं निर्देशन चन्द्रभाष सिंह द्वारा किया गया।
नाटक रानी रूपमती सुप्रसिद्ध दुर्ग मांडवगढ़ की संगीत को समर्पित अद्भुत प्रेम कथा है। यह नाटक रूपमती व बाज बहादुर की अधूरी प्रेम कहानी है, जिसका कारण बना बादशाह अकबर। बाज बहादुर व रूपमती के प्रेम का आधार व संवाहक संगीत है। दोनों ही उच्च कोटि के कलाकार है, प्रेम की पवित्रता गंभीरता व मर्यादा का पालन करते है। सामाजिक ताने बाने को बुनती कहानी की आत्मा संगीत है। बाज बहादुर व रूपमति रोजाना नर्मदा के किनारे संगीत की साधना करते है, जब ये बात फैलती है तो लोग उसके चरित्र पर उंगली उठाने लगते है।रूपमती के पिता राजा यदुराय परभार रूपमति का विवाह ठाकुर बल्देव सिंह के साथ तय कर देता है।रूपमति अपने कुल और पिता की मर्यादा के लिए विवाह करने को तैयार हो जाती है परन्तु बाज बहादुर का संगीत उसे अपनी तरफ बरबस खीचता है। वह धरमपुरी को छोड़ कर मांडव के लिए निकल जाती है। बाज बहादुर को जब पता चला कि रूपमती अपना सब कुछ छोड़कर उनके पास मांडव रहने के लिए आ रही थी, तो उन्हें अपने सैनिकों के साथ जहाज महल में रहने के लिए भेज देता है। रूपमति बाज़बहादुर के साथ मिलकत मालवा की प्रजा के हित में अनेकों काम करते है, नर्मदा से नहर खोदकर मांडव तक लाते है और पूरे ऊसर बंजर निवाड़ प्रान्त को हरा भरा बनाते है और साथ ही साथ संगीत की साधना भी करते है, मालवा की प्रजा रूपमति को रानी का दर्जा देती है।इधर मालवा सूबेदार हाफ़िज खान मालवा का सुल्तान बनने का सपना देखने लगता है और वह अकबर के सिपहसालार बैरम खां और अदहम खान के साथ मिलकर षणयंत्र करता है।
संगीत सम्राट तानसेन को जब पता चलता है तो वह अकबर को समझाने का प्रयास करता है और कहता है कि बाज बहादुर एक कलाकार है और कलाकार का युद्ध से कोई लेना देना नहीं होता है। तानसेन बाज बहादुर और रूपमती से मिलता हैं और हर तरह से परीक्षा लेकर पठान और मुगलों के बीच जो बैर था उसे मित्रता में बदल देता है। जब यह बात हाफ़िज़ खान और अदहम खान को पता चलती है तो दोनों मिलकर मांडव से लौटते वक्त तानसेन को गिरफ्तार कर लेते है और अकबर तक खबर पहुंचते हैं कि बाज बहादुर ने तानसेन को गिरफ्तार कर लिया और वह दिल्ली पर चढ़ाई करने वाला है। अकबर गुस्से में आकर अदहम खान को मांडव पर चढ़ाई का आदेश देता है। रानी रूपमती बाज बहादुर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करती है अंत में रानी रूपमती गिरफ्तार कर ली जाती है और घायल बाज बहादुर छिप जाता है।अदहम खां की रूपमति पर नियत खराब हो जाती है वह रूपमति के साथ निकाह करने के लिए उस पर दबाव डालता है जिससे रानी रूपमती हीरा चाट कर अपनी जान दे देती है और बाद में बाज बहादुर भी युद्ध में मारा जाता है तभी अकबर वहां पहुंच जाता है जिसे की तानसेन द्वारा सच्चाई बताई जा चुकी होती है। अकबर सैनिकों को आदेश देता है कि अदहम खान को गिरफ्तार कर ले। अकबर अफसोस जाहिर करता है कि उसकी वजह से हिंदुस्तान के दो बेजोड़ कलाकार इस दुनिया से कुच कर गए। डेढ़ घंटे से अधिक अवधि के नाटक ने अपनी कहानी और कलाकरों के अभिनय से दर्शकों को बाधें रखा।
नाटक में जूही कुमारी,बृजेश कुमार चौबे, निहारिका कश्यप, सुन्दरम मिश्रा, प्रणव श्रीवास्तव,करन दीक्षित, कोमल प्रजापति, अनामिका रावत,अभय प्रताप सिंह,शशांक तिवारी, पीयूष राय, श्रेयांश यादव, प्रदीप मिश्रा, ज़ौरज कलीम शुभम कुमार, कंचन शर्मा आदि कलाकरों ने भूमिका निभाई।सह-निर्देशन सुन्दरम मिश्रा प्रकाश संयोजन मो.हफीज,पार्श्व संगीत चन्द्रभाष सिंह,सेट जामिया शकील एवं शिवरतन,मेकअप सचिन गुप्ता आदि।